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सुख समृद्धि के उपाय

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गृह और रत्न

माणिक्य अत्यंत मूल्यवान और लोकप्रिय रत्न है। यह लाल रंग का होता है और इसके लाल रंग जैसी जगमगाहट किसी अन्य रत्न को प्राप्त नही है । इसलिये इसकी गणना महारत्नों में की जाती है ।

माणिक्य के नाम:-

संस्कृत में माणिक्य, रविरंत्न और कुरू विन्लोहित कहा जाता है । हिन्दी मेँ माणक अंग्रेजी में रूबी फारसी से याकूत कहा जाता है ।

माणिक्य के वर्ण

ब्राह्मण वर्ण -

इस वर्ण का माणिक्य गुलाब के पुष्प जैसे रंग का होता है ।

क्षत्रिय वर्ण -

यह माणिक्य रक्त वर्ण अर्थात लाल कमल के रंग कं समान होता है ।

वैश्य वर्ण -

लाल कंधारी अनार या कबूतर के रक्त जैसे रंग का माणिक्य वैश्य वर्ण का होता है ।

शूद वर्ण -

इस वर्ण का माणिक्य लाली नीलापन और मलिनता लिये होता है।

माणिक्य के नाम:-  श्रेष्ठ माणिक्य लाल काल की पंखुडियों के समान लाल, निर्मल, और सुन्दर होता है। माणिक्य का सर्वोत्नम रंग कंधारी अनार के समान होता है। श्रेष्ठ माणिक्य पारदर्शक होता है । जो माणिक्य कमल की पंखुडि़यों में रखने से चमकने लगें, वहि माणिक्य श्रेष्ठ होता है। अंधकार में माणिक्य को रखने पर वह सूर्यं की आभा के समान प्रकाशित हो तो वह निरूसंदेह श्रेष्ठ माणिक्य है यदि माणिक्य को पत्थर पर घिसने से पत्थर घिस जाये, किन्तु माणिक्य न घिसे और उसका वनज न घिसे एवं घिसने से उसकी शोभा में भी वृद्धि हो तो उस माणिक्य को शुद्ध जाति का माणिक्य ही जानना चाहिये । गोल अथवा लम्बा माणिक्य भी श्रेष्ठ होता है । एक लोटे दूध में माणिक्य को डाल देने से दूध लाल दिखाई देगा या किरणे दिखाई देने लगे तो माणिक्य उत्तम है । प्रातः काल सूर्य के सामने दर्पण पर माणिक्य को रखें । यदि दर्पण के नीचे की और छाया भाग में किरणे दिखाई दे तो माणिक्य उत्तम व श्रेष्ठ है । असली माणिक्य बर्फ पर स्पर्श करते ही आवाज करता है ।

माणिक्य कब धारण करें:-  सूर्य यदि दस अंश तक का है तो मधा नक्षत्र के प्रथम चरण में खरीदना चाहिये । दूसरे चरण से अंगूठी बनवाकर जड़वाना चाहिये और तीसरे चरण में धारण कर लेना चाहिये ।सूर्य यदि ग्यारह अंश से बीस अंश तक का हो तो पूर्वा फाल्गूनी नक्षत्र के तीसरे चरण में खरीदना चाहिए । चौथे चरण में अंगूठी; तांबे में या सोने में बनवाना चाहिये ओर उत्तरा फाल्गूनी के प्रथम चरण में धारण कर लेना चाहिये । सूर्य यदि इक्कीस अंश से तीस अंश तक हो तो पूर्वा फाल्गूनी नक्षत्र के तीसरे चरण में खरीदना चाहिये। चोथे चरण में बनवाना चाहिए और उत्तरा फाल्गुनी के प्रथम चरण में धारण करना चाहिये । माणिक्य के उपरत्न रूबी, रक्ताशंम, लाल रक्तमणि ।

प्राचीन भारत में सूर्यवंशी राजाओं से लेकर चन्द्रवंशी आर्यो का अत्यधिक प्रिय रत्न रहा है मोती । अथर्ववेद में इसके धारण करने के बारे में विस्तार से बताया गया है। मोती धारण करना जहां सुख.शान्ति और समृद्धि का स्रोत समझा जाता था वहा यह चिरयौवन को देने वाला राजयोग यानी राज्यकृपा का प्रतीक भी माना जाता था ।

मोतियों के वर्ण

ब्राह्मण वर्ण -

श्वेत छाया वाला मोती ब्राम्हण वर्ण का होता है। इसके धारण करने से बुद्धि की वृद्धि होती है।

क्षत्रिय वर्ण -

लाल छाया वाला मोती क्षत्रिय वर्ण का होता है। इससे तेज बढ़ जाता है ।

वैश्य वर्ण -

यह मोती पीत आभा से यूक्त होता है। इस मोती को धारण करने से आनन्द तथा सुख सम्पति में वृद्धि होती है ।

शूद वर्ण -

यह मोती कृष्ण छाया से युवा होता है। इस मोती को धारण करने से सानन्द तथा सुख सम्पति में वृद्धि होती है।

मोतियों कीं परीक्षा:-  मोतियों की परीक्षा के लिये निम्न विधि का उपयोग करना चाहिये । चावल के छिल्को में मोतियों को रखकर खूब रगड़े ओंर उसके बाद उन मोतियों को गोमूत्र से धो लें। जो मोती नकली होगा वह टुट जायेगा और जो असली होगा वह नही टुटेगा। साफ काँच के गिलास में पानी डालकर उसमें मोती डाल देने पर उस पानी मे हलकी हलकी किरणे भी दिखाई देती है। नकली मोती के ऊपर की पतर कठोर होती है चावल में कच्चे मोती को रगड़ने रने उसकी चमक कम पड़ जाती है। जबकि असली मोती की चमक बढ़ जाती है ।

मोती का उपरत्न:-  चन्द्रकान्त मणि (Moon Stone)

माणिक्य कब धारण करें:-  चन्द्रमा किसी भी अंश का हो तो पुष्प नक्षत्र के प्रथम चरण में मोती को खरीदना चाहिये दूसरे चरण में जड़वा और तीसरे चरण में पहनना चाहिये ।

नोट- मोती को धारण करने से पूर्व जातक को किसी ज्योतिषि से सलाह एवं अभिमंत्रित् करवा लेना चाहिये ।

मूंगा श्वेत गुलाबी, नारंगी, लाल और काला इन रंगों में मिलता है। मोती कि भाति मूंगा भी खनिज रत्न नहीं है इसलिये खनिज विज्ञानवता इस पर ध्यान नही देते हैं, मोती के समान यह भी समुद्र से प्राप्त होता है ।

मूंगे के वर्ण

ब्राह्मण वर्ण -

ब्राम्हण मूंगा वह कहलाता है जो लाल रंग का होता है जो कोमल हो, चिकनापन लिये हो तथा जिसमें सरलता से छिद्र किया जा सकता है।

क्षत्रिय वर्ण -

इस मूंगे का रंग बंधूक पुष्य के समान या अनार पुष्य के समान होता है । इसमें अधिक चिकनापन नही होता है । यह कठोर होता है तथा इसमें सरलता से छिद्र नही होता है ।

वैश्य वर्ण -

इसका रंग पलाश पुष्य के समान होता हें। रंग अपेक्षाकृत गहरा होता है तथा स्पर्श करने पर चिकना महसूस होता है। किन्तु इसमें चमक केवल नाम मात्र की ही होती है ।

शूद वर्ण -

यह कांतिरहित, कठिन और कमल के दलों के रंग का होता है। इसमें छिद्र नही जिया जा सकता है ।

मूंगे की परीक्षा:-  जो मूंगा रूखा भारहीन या चमकदार न हो उसे धारण करने का कोई लाम नही होता वह लाभ के स्थान पर हानि ही अधिक करता है । यदि रक्त में मूंगा रख दिया जाये |तो उसकं चारों और गाढा रक्त जमा हो जायेगा । यदि मूंगे को सूर्य की धूप में रूई पर रख दिया जाये तो थोडी देर में ही रूई जल उठेगी। मूंगे को दूध में डालने पर दूध में लाल रंग की झांईं स्री देखने को मिले तो वह भी श्रेष्ठ मूंगा होता है

मूंगे के उपरत्न :-   लाल जैस्पर, अम्बर (कहरूवा), तामडा, रात-रतुवा (कार्नेलियना)

मूंगा कब धारण करे :-  मंगल यदि दस अंशों तक हो तो अनुराधा नक्षत्र के प्रथम चरण में खरीदना चाहिये ।दूसरे चरण में बनवा लेना चाहिये और तीसरे चरण में पहनना चाहिये । मंगल यदि ग्यारह अंश से बीस अंश तक हो तो अनुराधा नक्षत्र के दूसरे चरण में खरीदना चाहिए तीसरे चरण में अंगूठी बनवाना चाहिये तथा चौथे चरण में धारण करना चाहिये। मंगल यदि इक्कीस अंश से तीस अंश तक हो तो अश्विनी नक्षत्र के पहले चरण में खरीदना चाहिये दूससे चरण में बनवाना चाहिये और तीसरे चरण में धारण करना चाहिये।

नोट-मूंगे को धारण करने से पूर्व जातक को किसी ज्योतिषि से सलाह एवं अभिमत्रित करवा लेना चाहिये ।

पन्ना या करकत बुध ग्रह का रत्न है। यह अशुभ रहने पर जिस स्थान से संबंध रखता है उसी भाव का नाश करता है। स्वास्थ्य के लिये प्रतिकूल स्थिति में रहने से ह्रदय रोग खासी ओर कुंष्ठ जैसी बीमारियों पैदा करता है। इसलिये पन्मे का 58 रत्ती का तावडा धारण करने से तुरन्त और चमत्कारिक रूप से हृदय की बीमारी में लाभ पहुंचता है।

पन्ना के वर्ण

ब्राह्मण वर्ण -

यह पन्ना शिरीष पुष्य जैसे रंग वाला होता है।

क्षत्रिय वर्ण -

यह पन्ना गहरे रंग का होता है ।

वैश्य वर्ण -

यह पन्ना पीत आभा युक्त हरे रंग का होता है।

शूद वर्ण -

यह पन्मा श्याम आभा हरें रंग का होता है ।

पन्ने की परीक्षा:-   असली पन्ने का रंग कृतिम प्रकाश मेँ भी हरा दिखाई देता है। यदि पन्ने को पानी के गिलास में डाल दिया जाये तो पानी में हरी किरणे निकलती दिखाई देगी। यदि पन्ना अपने औसत से वजन में हल्का प्रतीत हो तो यह असली पन्मा नहीँ होता है । सफेद वस्त्र पर पना यदि थोडी ऊँचाई पर रखें तो वस्त्र का वह भाग हरा दिखाई देगा।

पन्ना के उपरत्न:-  हरी-पीली आभा वाला बैरूज, हरी-पीली आभा वाला जबरजद्ध, संग मरगज, फिरोजा |

पन्ना कब धारण करें:-   बुध यदि दस अंश तक है तो हस्त नक्षत्र के प्रथम चरण में खरीदना चाहिये दूरारे चरण में बनवाना चाहिये और तीसरे चरण में धारण करना चाहिये। बुध यदि ग्यारह से बीस अंशों तक हो तो हस्त नक्षत्र के दूसरे चरण में खरीदना चाहिये तीसरे चरण में बनवाना चाहिये और चौथे चरण से धारण करना चाहिये । बुध यदि इक्कीस अंश से तीस अंश तक हो तो पुनर्वसु नक्षत्र में खरीदना चाहियेए दूसरे चरण है बनवाना चाहिये और तीसरे चरण में पहनना चाहिये ।

नोट-पन्ने को धारण करने से पूर्व जातक को किसी ज्योतिषि से सलाह एवं अभिमत्रित करवा लेना चाहिये ।

पुखराज बृहस्पति का रत्न है बृहस्पति वर्ण से पीला है। इसकी अच्छी स्थिति से व्यक्ति, गौर वर्ण से और शरीर से पुष्ट होता है । नेत्रों में पीली झांई बृहस्पति का प्रत्यक्ष प्रभाव है। भारतीय दृष्टि से यह ग्रह ज्ञान, सुख और पुत्र का कारक है ।

पुरखराज के वर्ण

ब्राह्मण वर्ण -

इस वर्ण का पुखराज सफेद होता है ।

क्षत्रिय वर्ण -

इस वर्ण का पुखराज हरे रंग का होता है ।

वैश्य वर्ण -

इस वर्ण का पुखराज पीले रंग का होता है ।

शूद वर्ण -

इस वर्ण का पुखराज श्याम आभायुक्त होता है।

पुखराज की परीक्षा:-  काली गाय के गोबर में पुखराज रगड़ने से उसका रग मटमैला न होकर और भी अधिक चमकने लगे तो वह श्रेष्ठ होता है सफेद कपडे़ पर पुखराज रखकर सूर्य की धूप में देखे तो कपडे़ पर पीली झांई सी दिखाई दे तो यह अच्छे पुखराज की निशानी है ।

पुखराज के उपरत्न:-  सुनहला कैरू, केसरी, घिया, पीला जिरकॉन, पीला मोती।

पुखराज कब धारण करें:-  ग्यारह तो बीस अंश तक हो तो उत्तरा भाद्रपद नक्षत्र के प्रथम चरण में खरीदना चाहियेए दूसरे चरण में बनवाना चाहिये और तीसरे चरण में धारण किया जाना चाहिये । गुरू कारकांश में यदि दस अंश तक हो तो रेवती के प्रथम चरण मेँ खरीदना चाहियेए दूसरे चरण में बनवाना चाहिये और तीसरे चरण में धारण करना चाहिये! गुरू यदि इक्कीस अंश से उन्तीस अंश तक है तो उत्तरा भाद्रपद के चौथे चरण ने खरीदना चाहिये, रेवती के प्रथम चरण में बनवाना चाहिये और तीसरे चरणा में करना धारण चाहिये ।

नोट- पुखराज को धारण करने से पूर्व जातक को किसी ज्योतिषि से सलाह एवं अभिमंत्रित जरूर करवा लेना चाहिये।

हीरा स्वयं तो महान है ही यह जिस किसी को भी स्पर्श कर देता है उसको अधिक रोचक और सुन्दर बना देता है। जल में बहकर आए किसी काष्ठ के टुकडे़ पर पन्ना अथवा पुखराज रखिये तो पन्ना स्वयं दहक उठेगा और पुखराज स्वयं सूर्य के समान भास्वर हो उठेगा। किन्तु हीरे को उस काष्ठ पर रखेंगे तो वह काष्ठ को अधिक श्वेत, अधिक सुहावना और रवेदार दिखलाई देगा।

हीरे के वर्ण

ब्राह्मण वर्ण -

इस वर्ण का हीरा एकदम श्वेत होता है तथा ब्राम्हण लोगों को शुभकारी होता है।

क्षत्रिय वर्ण -

यह हीरा लाल और पीले रंग का होता है।

वैश्य वर्ण -

हरे रंग का यह हीरा वैश्यों के लिये लाभप्रद होता है।

शूद वर्ण -

खंग के समान नीले रंग का हीरा शूद्रों को लाभकारी होता है।

हीरे की परीक्षा:-  यदि तेज गरम दूध में हीरा डाल दिया जाये तो वह एकदम ठण्डा हो जाता है। यदि सूर्य की धूप में हीरा रख दिया जाये तो इसका प्रकाश कई सौ गुना बढ़ जाता है। यदि कोई बच्चा या बड़ा तुतलाकर बोलता है और वह हीरा मुंह में रख ले चबाये नही तो उसका उच्चारण शुद्ध हो जायेगा, गरम पिघले हुए घी में यदि हीरा रख दे तो वह धीरे धीरे जमने लगेगा , रविवार , बुधवार, तथा शनिवार को हीरा कभी न खरीद कर घर लाये।

हीरे के उपरत्न:-  ओपल सफेद जक्रन या सफेद तुरमली।

हीरा कब धारण करें:-  दस अंश तक शुक्र हो तो रोहिणी नक्षत्र के प्रथम चरण में उसे खरीदना चाहिये, दूसरे चरण में बनवाना चाहिये तथा तीसरे चरण में पहनना चाहिये। ग्यारह से बीस अंश तक अगर शुक्र हो तो रोहिणी के चौथे चरण में खरीदना चाहिये, मृगशिरा के प्रथम चरण में बनवाना चाहिये और मृगशिरा के ही दूसरे चरण में धारण करना चाहिये। इक्कीस से तीस अंश तक अगर शुक्र हो तो स्वाति नक्षत्र के प्रथम चरण में खरीदना चाहिये, स्वाति नक्षत्र के दूसरे चरण मे बनवाना चाहिये तथा स्वाति के ही तीसरे चरण में पहनना चाहिये।

नोट- हीरे को धारण करने से पूर्व जातक को किसी ज्योतिषि से सलाह एवं अभिमंत्रित जरूर करवा लेना चाहिये।

नीलम एक ऐसा बहुमूल्य रत्न है, जो परेशानियों से तंग आये लोगों की जिंदगी में दोबारा नई रोशनी लाता है। ऐसा माना जाता है कि इसे पहनने वाले की पंच देवियां या फरिश्ते सुरक्षा करते है। यूनानी लोग इसे अपने देवी देवताओं को भेंट चढ़ाया करते थे। नीलम कभी भी बिना ज्योतिषि की सलाह के नही धारण करना चाहिये।

नीलम के वर्ण

ब्राह्मण वर्ण -

यह सफेदी लिये हुये नीला होता है।

क्षत्रिय वर्ण -

इससे सुर्ख रंग की झलकता है। 

वैश्य वर्ण -

यह जर्दी मिश्रित नीला होता है।

शूद वर्ण -

यह काले या स्याह रंग की झलक वाला होता है।

नीलम कीं परीक्षा:-  साफ पानी के गिलास में नीलम डाल दिया जाये तो उसमें से नीली किरणें निकलती सी दिखाई देती है। नीलम सामान्यत: अपने आकार से वनज में हल्का होता है। धूप में रखने पर इसकी चमक में वृद्धि होती है। यदि पूर्णिम की रात्रि को दूध पर नीलम की छाया डाले तो दूध नीले रंग का प्रतीत होता है।

नीलम का उपरत्न:-  नीली, कटैला।

नीलम कब धारण करें:-  यदि शनि एक से दस अंश तक हो तो श्रवण नक्षत्र के प्रथम चरण में खरीदना चाहिये, दूसरे चरण में बनवाना चाहिये तथा तीसरे चरण में पहनना चाहिये। यदि शनि ग्यारह से बीस अंश तक हो तो श्रवण नक्षत्र को चैथे चरण में खरीदना चाहियें, धनिष्ठा के पहले चरण में बनवाना चाहिये तथा धनिष्ठा के ही दूसरे चरण में धारण करना चाहिये। यदि शनि इक्कीस से छत्तीस अंश तक हो तो पूर्वी भाद्रपद नक्षत्र के प्रथम चरण में खरीदना चाहिये, दूसरे चरण में बनवाना चाहिये तथा तीसरे चरण में पहनना चाहिये।

नोट-बिना ज्योतिषि की सलाह के बिना नीलम कभी भी नही पहनना चाहिये तथा पहनने से पहले किसी ज्योतिषि से अभिमंत्रित जरूर करवा लेना चाहिये।

बाली के मद से उत्पन्न रत्नीय पत्थर गोमेद कहलाता हे। गोमेद ही ऐसा रत्न है जो सबसे ज्यादा रंगो में पाया जाता है कहा जाता है कि समुद्र मंथन के समय अकस्मात राहु ने देवरूप धारण कर अमृत का अनुपान कर लिया था। सूर्य और चन्द्रमा के संकेत किये जाने पर विष्णुजी ने अपने सुदर्शन चक्र से उसका सिर काट डाला। चूंकि राहु ने अमृत पान कर लिया था।। अत तभी से सिर का भाग राहु और धड़ का भाग केतु रूप में विख्यात है।

गोमेद के वर्ण

ब्राह्मण वर्ण -

इस वर्ण का गोमेद श्वेत आभा वाला होता है।

क्षत्रिय वर्ण -

पीता वर्ण का गोमेद क्षत्रिय वर्ण का माना जाता है।

वैश्य वर्ण -

इस वर्ण का गोमेद लाल रंग का होता है।

गोमेद कीं परीक्षा:-  लकड़ी के बुरादे से यदि गोमेद को रगड़े तो उसकी चमक घट जाती है। गोमूत्र में गोमेद रखकर उसे चैबीस घण्टे पड़ा रहने दे तो गोमूत्र का रंग बदल जाता है।

गोमेद का उपरत्न:-  अम्बर, तुरसावा।

गोमेद कब धारण करें:-  इसे हस्त्र नक्षत्र के तृतीय चरण में खरीदना चाहिये, द्वितीय चरण में बनवाना चाहिये तथा प्रथम चरण में धारण करना चाहिये।

नोट- गोमेद को धारण करने से पूर्व जातक को किसी ज्योतिषि से सलाह एवं अभिमंत्रित जरूर करवा लेना चाहिये।

लहसुनियां रत्न “वैदृर्य” या “कैटस आई” का नाम से भी जाना जाता है। लहसुनियां का रंग अधिकतर भूरापन लिये होता है। इसमें रेशम जैसी चमक पाई जाती है। अधंकार मे लहसुनियसां के विभिन्न रंग जगमगातें है। यघपि लहसुनियां वजन के आधार पर धारण किया जाता है फिर भी वजन के समानांतर इसके भीतर चलायेमान प्रतीत रहते हुये सूत्र महत्वपूर्ण रहते है।

लहसुनिया के वर्ण

ब्राह्मण वर्ण -

इस वर्ण का लहसुनियां रत्न सफेद होता है किन्तु इसमें से नीली सी झांई निकलती है।

क्षत्रिय वर्ण -

यह भी सफेद ही होता है किंतु इसमें से लाल सी झांई निकलती है।

वैश्य वर्ण -

यह लहसुनियां पीले रंग का होता है तथा इसमें से पीली झांई ही निकलती है।

शूद वर्ण -

यह मोती कृष्ण छाया से युवा होता है। इस मोती को धारण करने से सानन्द तथा सुख सम्पति में वृद्धि होती है।

लहसुनिया कीं परीक्षा:-  यदि श्वेत वस्त्र पर लहसुनियां को रगड़ा जाये तो इसकी चमक में वृद्धि हो जाती है इसे किसी अस्थि पर रख लिया जाये तो चैबीस घण्टो के भीतर यह उसमें छिद्र कर देता हे।

लहसुनिया का उपरत्न:-  मार्का, एलेग्जण्ड्राइट।

लहसुनिया कब धारण करें:-  जिस किसी भी दिन मेष मीन या धनु राशि का चन्द्रमा हो अथवा अश्विनी माघ या मूल नक्षत्र हो तो इसे बनवाना चाहिये ओैर शुक्ल पक्ष के पहले शनिवार को धारण करना चाहिये।

नोट- लहसुनिया को धारण करने से पूर्व जातक को किसी ज्योतिषि से सलाह एवं अभिमंत्रित जरूर करवा लेना चाहिये।