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सुख समृद्धि के उपाय

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अशुभ तिथियाँ

विष्कुम्भ योग , अतिगण्ड योग, गंड योग , शूल योग , व्याघात योग, वज्र योग , परिध योग (इन सब योगो मे कोई भी शुभ कार्य नहीं करना चाहिये ) ( परिध योग मे केवल शत्रु के विरुद्ध किये गए कार्य मे ही सफलता मिलती है ) ! ,व्यतिपात और वैधृति योग अगर हो तो उस दिन और उससे एक दिन पहले और एक दिन बाद भी कोई शुभ कार्य नहीं करना चाहिये !

नंदा तिथि

नंदा तिथि – प्रतिपदा ( परेवा ) , षष्ठी ( केवल षष्ठी के दिन मृगशिरा नक्षत्र हो और दिन सोमवार आये तो शुभ कार्य ना करे ) , प्रतिपदा , षष्ठी, एकादशी ( केवल एकादशी तिथि को रोहिणी नक्षत्र हो और दिन शनिवार आये तो शुभ कार्य ना करे ) ( अगर एकादशी को धनु या मीन राशी हो तो शुभ कार्य ना करे ) , प्रतिपदा , षष्ठी, एकादशी ( इन तिथियों मे अगर रविवार और मंगलवार आये तो शुभ कार्य ना करे ,इन दिनों के अलावा बाकि दिन मे इन तिथियों मे शुभ कार्य करे ) ,
नोट – अगर शुक्रवार आये तो शुभ कार्य जरुर करे !

जया तिथि

जया तिथि – तृतीय , त्रयोदशी ( अष्टमी भी जया तिथि मे आती है लेकिन अष्टमी तिथि मे कोई भी शुभ कार्य नहीं करना चाहिए इसलिये अष्टमी को नहीं लिखा है ! इन तिथियों मे अगर बुधवार आये तो शुभ कार्य ना करे , बुधवार के अलावा बाकि दिनों मे इन तिथियों मे शुभ कार्य करे ) ( केवल त्रयोदशी के दिन वृष और मीन राशी हो तो शुभ कार्य ना करे ) 
नोट – इन तिथियों मे अगर मंगलवार आये और अशुभ राशी जैसे त्रयोदशी के दिन वृष और मीन राशी आये तो शुभ कार्य ना करे !

पूर्णा तिथि

पूर्णा तिथि – पंचमी ( केवल पंचमी तिथि मे अगर हस्त नक्षत्र हो तो शुभ कार्य ना करे ) , दशमी ( केवल दशमी तिथि को रेवती नक्षत्र हो और दिन शुक्रवार हो तो शुभ कार्य ना करे ) , पंचमी ,दशमी ,पूर्णमासी ( इन तिथियों मे अगर शनिवार या रविवार आये तो शुभ कार्य ना करे , शनिवार और रविवार के अलावा बाकि दिनों मे शुभ कार्य करे )
नोट – अगर गुरुवार आये तो शुभ कार्य जरुर करे !

अशुभ तिथि

भद्रा तिथि – दितीय , सप्तमी , द्वादशी ( इन तिथियों मे केवल मारक करना चाहिए )
रिक्ता तिथि – चतुर्थी , नवमी , चतुर्दशी !

कुछ विशेष नियम

ऑपरेशन –  opration, यदि संभव हो तो कृष्णा पक्ष, में पूर्णमासीका दिन छोड़ कर, कराना चाहिए।अपने जन्म नक्षत्र को छोड़ना चाहिए। मंगलवार या शनिवार का दिन जब आर्द्रा, ज्येष्ठा,अश्लेष या मूल नक्षत्र चन्द्रमास की चतुर्थी ,नवमी अथवा चतुर्दशी तिथि को पड़ते हों, शुभ है, जब मंगल और शनि की एक दूसरे पर दृष्टि हो तो उस दिन को भी छोड़ देना चाहिए |

मांगलिक कार्यों के लिए अशुभ समय

  • शनि स्थित नक्षत्र से 7 वां नक्षत्र कालदोष कहलाता है| तथा 20 वां नक्षत्र "गण्ड" होता है| अतः इन दोनों नक्षत्रों को शुभ कार्यों के लिए टालना चाहिए ।
  • जन्मकुंडली में सूर्य स्थित नक्षत्र से मूल नक्षत्र तक के सभी नक्षत्रों की गणना करके मूल नक्षत्र से उतनी ही संख्या पर आने वाला नक्षत्र 'कण्डक' कहलाता है| इसे भी शुभ कार्यों से अलग रखना चाहिए |
  • इसी प्रकार मंगल द्वारा अधिकृत नक्षत्र से मूल नक्षत्र तक गणना करके मूल नक्षत्र से उतनी ही संख्या पर आने वाला नक्षत्र 'स्थूण ' होता है, यह भी शुभ कार्यों के लिए उपयुक्त नहीं होता है |
  • अपने जन्म नक्षत्र से फलित दिन अर्थात जिस दिन कोई मांगलिक कार्य करने की धारणा हो, को प्रभावित नक्षत्र तक गिने तथा जो संख्या आये उसे 9 से विभक्‍त करें। (यदि यह संख्या 9 से कम हो तो इसे ऐसे ही रहने दें)। विभक्त करने के बाद यदि शेष 
           1 आये तो शारीरिक खतरा; 
           2 आये तो धन सम्पत्ति की प्राप्ति होगी; 
           3 हो तो हानि अथवा दुर्घटना;
           4 शेष हो तो सम्पन्‍नता; 
           5 हो तो रुकावटे; 
           6 हो तो मनोकामना पूरी होगी; 
           7 शेष आने पर खतरे; 
           8 शेष आने पर शुभ 
    तथा शून्य आये तो बहुत ही अनुकूल होगा। जब गणना के बाद संख्या 9 से कम आये तो मूल नक्षत्र से तीसरा नक्षत्र खतरे, हानि तथा दुर्घटनाओं का बोधक है, यदि 5वां नक्षत्र है तो बाधांए उत्पन्न करेगा, अतः कोई भी मांगलिक कार्य करने से पहले अथवा यात्रा आरम्भ करने से पूर्व प्रतिकूल अथवा नकारात्मक नक्षत्रों को टाल देना चाहिए |
  • घनिसठा नक्षत्र के तीसरे भाग से रेवती नक्षत्र तक किसी भी शुभ कार्य के लिए उपयुक्त नहीं है, अपवाद के रूप में उत्तरभाद्रपद नक्षत्र शपथ ग्रहण समारोह, नगरों के शिलान्यास तथा फसलों की बुआई के लिए शुभ है |
  • भरणी, कृतिका, अश्लेष का अंतिम भाग, ज्येष्ठा तथा रेवती नक्षत्रों को टाल देना चाहिए , तथा घनिष्ठा नक्षत्र के 3 भाग से रेवती नक्षत्र तक कोई शुभ कार्य न करें |
  • जब सूर्य एक नक्षत्र से गुजर रहा हो तो उस नक्षत्र की 12 वी डिग्री से अगले आने वाले नक्षत्र की दूसरी डिग्री को छोड़ना चाहिए |
  • प्रथम पुत्र अथवा पुत्री (जेठे) का विवाह ज्येष्ठ मास में, जब की ज्येष्ठ नक्षत्र का प्रभाव होता है, नहीं करना चाहिए|
  • कोई भी शुभ कार्य अपने नक्षत्र से 3, 5 ,7 और 22 वें नक्षत्र में नही करना चाहिए|
  • जन्म नक्षत्र से 88 भाग पर पड़ने वाले समय पर कोई शुभ कार्य नहीं करना चाहिए |
  • चैत्र मास में अश्वनी तथा रोहिणी ; ज्येष्ठ मास में चित्र, पुष्य, उत्तर-आषाढ़ तथा स्वाति; आषाढ़ मास में पूर्व-फाल्गुनी और श्रविष्ठा; श्रवण मास में पूर्व-आषाढ़ और उत्तर-आषाढ़ ; भद्रा मास में शतभीषा तथा रेवती और कार्तिक मास में मृगशीर्ष, अनुराधा, कृतिका तथा पुष्य नक्षत्रों का प्रभाव पड़ता हो तो इन्हे शुभ कार्यों से अलग करना चाहिए |

विवाह के लिए जन्मकुण्डली मिलाने के लिए कुछ संकेत

यदि लड़के और लड़की की जन्मकुण्डली मिलाते समय निम्न नक्षत्र दोनो के समान होते है तो जोड़ी उत्तम मानी जाती है :

1. रोहिणी2. आर्द्रा3. माघ4. हस्त
5. विशाखा6. श्रवण7. उत्तर-भाद्रपद8. रेवती

निम्नलिखित नक्षत्र समान हो तो जोड़ी मध्यम मानी जाती है :

1. अश्विनी2. कृतिका3. मृगशीर्ष4. पुर्नवसु5. पूर्व-फाल्गुनी
6. उत्तर-फाल्गुनी7. चित्रा8. अनुराधा9. पूर्व-आषाढ़10. उत्तर-आषाढ़

यदि लड़के और लड़की की कुंडली में निम्नलिखित नक्षत्र समान हो तो उनका विवाह नहीं होना चाहिए :

1. भरणी2.पुष्य3. अश्लेष4 स्वाति5. ज्येष्ठा
6. मूल7. श्रविष्ठा8. शताभिषज9. पूर्वभाद्रपद10. उत्तर-आषाढ़
निम्नलिखित नक्षत्रों का संयोग विवाह के लिए अशुभ है अतः इन्हें निरस्त कर देना चाहिए :

लड़कियां– कालम 1 नक्षत्र में उत्पन्न लड़कियों का विवाह कालम 2 नक्षत्र में उत्पन्न लड़को से नहीं करना चाहिए :

Sr. No.कालम-1कालम-2Sr. No.कालम-1कालम-2
1कृतिकाअश्लेष5अनुराधाश्रविष्ठा
2अश्लेषस्वाति6ज्येष्ठाशताभिषज
3चित्रापूर्व-आषाढ़7उत्तर-फाल्गुनीमृगशीर्ष
4शताभिषजकृतिका8 हस्ता मूल

उत्तम-संयोग – रेवती और उत्तर-आषाढ़, जो पूर्ण संतुष्टि देगा पूर्व -भाद्रपद और मूल, यह सम्पन्नता देगा; उत्तर भाद्रपद और पूर्व -आषाढ़ यह दोनों में प्यार उत्पन्न करेगा तथा पौष और भरणी जो सुख प्रदान करेगा |
लड़के– लड़कों के मामले में कालम-1 नक्षत्र में उत्पन्न लड़कों का विवाह कालम-2 नक्षत्र में उत्पन्न लड़कियों से उत्तम माना जाता है

Sr. No.कालम-1कालम-2Sr. No.कालम-1कालम-2
1आर्द्राउत्तरफाल्गुनी5पूर्वभाद्रपदरेवती
2रोहिणीमाघ6अश्विनीपुनर्वसु
3माघअनुराधा7पुष्यचित्रा
4स्वातिउत्तरआषाढ़8 रेवतीमाघ
9पुनर्वसुहस्त

मूल नक्षत्र के अंतिम भाग तथा अश्लेष नक्षत्र के प्रथम भाग में उत्पन्न लड़कियां किसी के लिए हानिप्रद नहीं होती|              
दूल्हा दुल्हन के सामंजस्यपूर्ण विवाहित जीवन के लिए दूल्हे का नक्षत्र दुल्हन के नक्षत्र से गिनने पर 9 वें 18 वें तथा 27 वें क्रम पर आना चाहिए |

मास शून्य तिथिया

चैत्र मास ( मार्च- अप्रैल ) –

दोनों पक्ष की अष्टमी और नवमी में कोई शुभ कार्य न करे ,तथा अश्वनी और रोहिणी नक्षत्र मे शुभ कार्य ना करे !

वैशाख मास ( अप्रैल-मई )

दोनों पक्षों की द्वादशी में कोई शुभ कार्य न करे, तथा चित्रा और स्वाति नक्षत्र मे शुभ कार्य ना करे !

ज्येष्ठ मास (मई-जून )-

शुक्ल पक्ष की चतुर्दशी और शुक्ल पक्ष की त्रयोदशी में कोई शुभ कार्य न करे , तथा उत्तराषाड मे शुभ कार्य ना करे !

आषाड मास ( जून –जुलाई ) –

कृष्ण पक्ष की और शुक्ल पक्ष की सप्तमी में कोई शुभ कार्य न करे ,तथा पूर्वाफाल्गुनी और घनिष्ठा नक्षत्र मे शुभ कार्य ना करे !

श्रवण मास ( जुलाई –अगस्त ) –

दोनों पक्षों की दितीया और तृतीया मास मे कोई शुभ कार्य ना करे तथा श्रवण और उत्तराषाड नक्षत्र मे कोई शुभ कार्य ना करे !

भाद्रपद (भादो मास)-(अगस्त –सितम्बर) –

शतभिषा और रेवती नक्षत्र मे कोई शुभ कार्य ना करे !

अश्विन मास ( सितम्बर- अक्टूबर ) –

दोनों पक्ष की दशमी और एकादशी को कोई शुभ कार्य न करे !

कार्तिक मास ( अक्टूबर – नवम्बर ) –

कृष्ण पक्ष की पंचमी और शुक्ल पक्ष की चतुर्दशी में कोई शुभ कार्य ना करे, तथा मघा और घनिष्ठा नक्षत्र मे कोई शुभ कार्य ना करे !

मार्गशीर्ष(अगहन) ( नवम्बर – दिसम्बर ) –

दोनों पक्षों की सप्तमी और अष्टमी को कोई भी शुभ कार्य न करे, तथा चित्रा और विशाखा नक्षत्र मे कोई शुभ कार्य ना करे !

पौष मास ( दिसम्बर –जनवरी )–

दोनों पक्षों की चतुर्थी और पंचमी में कोई शुभ कार्य ना करे , तथा अश्वनी , हस्त और आद्रा नक्षत्र मे कोई शुभ कार्य ना करे !

माघ मास (जनवरी – फरवरी ) –

कृष्ण पक्ष की पंचमी और शुक्ल पक्ष की षष्ठी मे कोई शुभ कार्य न करे,तथा मूल और श्रवण नक्षत्र मे कोई शुभ कार्य ना करे !

फाल्गुन मास ( फरवरी – मार्च ) -

कृष्ण पक्ष की चतुर्थी और शुक्ल पक्ष की तृतीया मे कोई शुभ कार्य ना करे,तथा ज्येष्ठा और भरणी नक्षत्र मे कोई शुभ कार्य ना करे !