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सुख समृद्धि के उपाय

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पितृदोष एवं मातदोष

श्राद्ध कर्म

हिन्दू शास्त्रों में कहा गया है कि मृत्यु के पश्चात पुत्र द्वारा किया गया श्राद्ध कर्म मृतक को वैतरणी पार करता है। ऐसे में माना है कि जिस व्यक्ति का अपना पुत्र ना हो तो उसकी आत्मा कभी मुक्त नहीं होती। इसी वजह से आज भी लोग पुत्र प्राप्ति की कामना रखते हैं।

सूर्य और मंगल

ज्योतिष विद्या में सूर्य को पिता का और मंगल को रक्त का कारक माना गया है। जब किसी व्यक्ति की कुंडली में ये दो महत्वपूर्ण ग्रह पाप भाव में होते हैं तो व्यक्ति का जीवन पितृदोष के चक्र में फंस जाता है।

ज्योतिषीय कारण

पितृदोष के बहुत से ज्योतिषीय कारण भी हैं, जैसे जातक के लग्न और पंचम भाव में सूर्य, मंगल एवं शनि का होना और अष्टम या द्वादश भाव में बृहस्पति और राहु स्थित हो तो पितृदोष के कारण संतान होने में बाधा आती है।

पुत्र का ना होना

हालांकि पुत्र के ना होने की हालत में आजकल पुत्री के हाथ से अंतिम संस्कार किया जाने लगा है लेकिन यह शास्त्रों के अनुकूल नहीं कहा जा सकता। इसलिए जिन लोगों का अंतिम संस्कार अपने पुत्र के हाथ से नहीं होता उनकी आत्मा भटकती रहती है और आगामी पीढ़ी के लोगों को भी पुत्र प्राप्ति में बाधा उत्पन्न करती है।

ज्योतिष विद्या

यह घटनाएं सीधे तौर पर ज्योतिष विद्या से जुड़ी हुई है, जो की अपने आप में एक विज्ञान होने के बावजूद युवापीढ़ी के लिए एक अंधविश्वास सा ही रह गया है। खैर आज हम आपको ज्योतिष विद्या में दर्ज पितृ दोष के विषय में बताने जा रहे हैं, जो किसी भी व्यक्ति की कुंडली को प्रभावित कर सकता है।

लग्न में ग्रह

अष्टमेश या द्वादशेश का संबंध सूर्य या ब्रहस्पति से हो तो व्यक्ति पितृदोष से पीड़ित होता है, इसके अलावा सूर्य, चंद्र और लग्नेश का राहु से संबंध होना भी पितृदोष दिखाता है। अगर व्यक्ति की कुंडली में राहु और केतु का संबंध पंचमेश के भाव या भावेश से हो तो पितृदोष की वजह से संतान नहीं हो पाती।

अध्यात्म से रिश्ता

कथित तौर पर मॉडर्न होती आजकल की जनरेशन का अध्यात्म से रिश्ता टूटता जा रहा है जिसके चलते वे सभी घटनाओं और परिस्थितियों को विज्ञान के आधार पर जांचने और परखने लगे हैं। वैसे तो इस बात में कुछ गलत भी नहीं है क्योंकि ऐसा कर वे रूढ़ हो चुकी मानसिकता से किनारा करते जा रहे हैं परंतु कभी-कभार कुछ घटनाएं और हालात ऐसे होते हैं जिनका जवाब चाह कर भी विज्ञान नहीं दे पाता।

पितृदोष

पितृ दोष के कारण व्यक्ति को बहुत से कष्ट उठाने पड़ सकते हैं, जिनमें विवाह ना हो पाने की समस्या, विवाहित जीवन में कलह रहना, परीक्षा में बार-बार असफल होना, नशे का आदि हो जाना, नौकरी का ना लगना या छूट जाना, गर्भपात या गर्भधारण की समस्या, बच्चे की अकाल मृत्यु हो जाना या फिर मंदबुद्धि बच्चे का जन्म होना, निर्णय ना ले पाना, अत्याधिक क्रोधी होना।

पूर्वज की मृत्यु

जब परिवार के पूर्वज की मृत्यु के पश्चात उसका भली प्रकार से अंतिम संस्कार संपन्न ना किया जाए, या जीवित अवस्था में उनकी कोई इच्छा अधूरी रह गई होतो उनकी आत्मा अपने घर और आगामी पीढ़ी के लोगों के बीच ही भटकती रहती है। मृत पूर्वजों की अतृप्त आत्मा ही परिवार के लोगों को कष्ट देकर अपनी इच्छा पूरी करने के लिए दबाव डालती है यह कष्ट पितृदोष के रूप में जातक की कुंडली में झलकता है।

मातृदोष की पहचान

  1. अगर कुण्डली का पहला भाव पाप ग्रहों से प्रभावित हो और चन्द्रमा 7वें भाव में हो तथा शनि और राहू 4वें और 5वें भाव को प्रभावित करें, तो कुण्डली में मातृदोष होता है
  2. राहू, गुरू और मंगल, 8वें भाव में हो तथा शनि और चन्द्रमा 5वें भाव में हो तो कुण्डली मातृदोष होता है।
मातृदोष के कारण मनुष्य को बार-बार विघ्न बाधाओं का सामना करना पड़ता है।